मां, जिंदगी और भूचाल
वास्तव में कहा जाए तो यह ऐसा शब्द है जिसमें केवल तीन शब्दों का प्रयोग किया गया है। परंतु ये तीन शब्द समय को साथ लेकर हो सकते हैं, वर्तमान समय को ध्यान में रखकर लिखे जा सकते हैं परंतु फिर भी मां और उनके जिंदगी से जुड़ा यह भूचाल शायद ही खत्म होने वाला हो।
हिंदू धर्म में जहां “मां” को पूजनीय के रूप में माना और देखा गया है। सम्मान के रूप में स्थान प्रदान किया गया है जिनसे यह माना जाता है की इनकी सेवा करने से सुख, संतुष्टि और सुरक्षा की अनुभूति प्राप्त होगी। जिन्हें परमेश्वरी, सृष्टि कर्ता यहां तक कि परमात्मा के रूप में स्थान दिया जाता है। ऐसे में क्या सच में आज के वर्तमान परिदृश्य में मां के साथ मां जैसा बरताव हो रहा है या फिर क्या ममता रूपी मां जिनका इतना बखान होता है केवल उन चंद कागजों या किताबो में ही है जो छप कर लोगों के बीच आ गयी हैं।
इन प्रश्नों को आना लाज़िम तो नहीं पर वर्तमान दशा को देख कर यही लगता है की आज न तो वह मां रह गई हैं जो काली माता का रूप धारण कर दुष्टों का नास कर दें और न ही धैर्य की देवी गौरी जगदम्बा रह गई हैं जो किसी के गलत कार्यों को इसलिए माफ कर दें क्योंकि उसने अंतिम समय में उनको मां कहकर बुलाया है। वैसे आज के समय में अगर ऐसा हो गया तब तो आज सब भैरव और लंकनी के रूप में उच्च स्थान प्राप्त कर लेंगे।
आपको शायद ये लग रहा होगा की आखिर मै कहना क्या चाहता हूं। वास्तव में मां जिंदगी और भूचाल, काल के उस डोर से बंधा है जहां लगभग सारे डोर एक दूसरे के पूरक के रूप में उलझे हुए हैं।
बस एक बात है जो सबमें समान है की मां के होने पर जिंदगी पूर्ण है और काल चक्र यानी पिता के होने पर आपको वीआईपी सुरक्षा प्राप्त है।
वास्तव में यह लेख अभी तक जो लिखा गया है वह नवभारत टाइम्स पेपर में सुप्रीम कोर्ट के एक बयान को लेकर है जिसमें लखीमपुर खीरी केस का ट्रायल पूरा होने में पांच साल तक का वक्त लगने की बात कही गई है। आपको बता दें की इस घटना में लखीमपुर खीरी में आंदोलन कर रहे किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी गई थी। अब जरा बताइए की वह पिता जो की आपके जरूरतों को पूरा कर रहा है और वह मां जिनसे आपको प्यार भरा आंचल मिल रहा है।
उनपर ही ऐसा जुल्म हो रहा हो तो फिर और क्या ही कहा जाए। आखिर वो अपनी मांग के लिए ही तो शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे।
मै यह नहीं कहता की न्याय नहीं मिलेगा, जरूर मिलेगा पर वैसे ही जैसे 2014 के वर्ष में एक लड़की के साथ हुए दुष्कर्म की सजा सात वर्षों बाद मिलती है। वैसे भी हमारा संविधान कहता है की न्याय का देरी से मिलना भी एक अन्याय ही है। और यहां तो एक दिन में इतिहास मिटा कर दूसरा इतिहास लिख दिया जाता है फिर ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी की पांच वर्ष का समय अब से लगने वाला है जबकि एक वर्ष पहले ही बीत चुका है!
धरती को सृजन करने वाली मां और उसको पोषित करने और जिंदगी देने वाले पिता को इतना भी झटका न दें की जोशीमठ और सीता माता की तरह सबको उसी रूप के भूचाल में ला दें जहां से शुरुआत हुई थी। समय अब भी है यह परखने का की कौन चोर है और कौन सिपाही और अगर ऐसा नहीं हुआ और परखने में चूक हुई तो याद रखिए आप वज़ीर से सीधे चोर के रूप में स्थान प्राप्त करेंगे।
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